ऊहापोह
(जितना भी)
जरूरी है।
विचार-विमर्श
हो परिपक्व जितने भी समय में।
तत्व-निर्णय के लिए
अनिवार्य
मीमांसा-समीक्षा / तर्क / विशद विवेचना
प्रत्येक वांछित कोण से।
क्योंकि जीवन में
हुआ जो भी घटित -
वह स्थिर सदा को,
एक भी अवसर नहीं उपलब्ध
भूल-सुधार को।
संभव नहीं
किंचित बदलना
कृत-क्रिया को।
सत्य -
कर्ता और निर्णायक
तुम्हीं हो,
पर नियामक तुम नहीं।
निर्लिप्त हो
परिणाम या फल से।
(विवशता)
सिद्ध है -
जीवन : परीक्षा है कठिन
पल-पल परीक्षा है कठिन।
वीक्षा करो
हर साँस गिन-गिन,
जो समक्ष
उसे करो स्वीकार
अंगीकार!