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कविता

निष्कर्ष

महेन्द्र भटनागर


ऊहापोह
(जितना भी)
           जरूरी है।
विचार-विमर्श
हो परिपक्व जितने भी समय में।


तत्व-निर्णय के लिए
अनिवार्य
मीमांसा-समीक्षा / तर्क / विशद विवेचना
प्रत्येक वांछित कोण से।


क्योंकि जीवन में
हुआ जो भी घटित -
            वह स्थिर सदा को,
एक भी अवसर नहीं उपलब्ध
            भूल-सुधार को।


संभव नहीं
किंचित बदलना
             कृत-क्रिया को।


सत्य -
कर्ता और निर्णायक
तुम्हीं हो,
पर नियामक तुम नहीं।

निर्लिप्त हो
परिणाम या फल से।
(विवशता)


सिद्ध है -
जीवन : परीक्षा है कठिन
पल-पल परीक्षा है कठिन।


वीक्षा करो
हर साँस गिन-गिन,
जो समक्ष
उसे करो स्वीकार
          अंगीकार!


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